वादा Poetry (page 9)

वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया

बशीर फ़ारूक़

जाने क्या देखा था मैं ने ख़्वाब में

बशर नवाज़

रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दास्तान-ए-ग़म तुझे बतलाएँ क्या

बाबर रहमान शाह

तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम

अज़्म शाकरी

शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई

अज़्म बहज़ाद

वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं

अज़ीज़ लखनवी

देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना

अज़ीज़ लखनवी

जफ़ा देखनी थी सितम देखना था

अज़ीज़ हैदराबादी

सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं

अज़हर फ़राग़

हवस ने मुझ से पूछा था तुम्हारा क्या इरादा है

औरंगज़ेब

मैं इंसान-ए-नौअ' हूँ मैं ईसा-नफ़स हूँ

आतिफ़ ख़ान

अपनी बेटी के नाम

अतीया दाऊद

साँसों के तआक़ुब में हैरान मिली दुनिया

अता आबिदी

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा

असरार-उल-हक़ मजाज़

वस्ल की जो ख़्वाहिश है

असरा रिज़वी

है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता

अशहर हाशमी

वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे

असर रामपुरी

भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया

असर लखनवी

दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है

असर लखनवी

जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए

असद भोपाली

फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले

आरज़ू लखनवी

हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा

आरज़ू लखनवी

ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से

आरज़ू लखनवी

फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले

आरज़ू लखनवी

कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना

आरज़ू लखनवी

किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है

आरज़ू लखनवी

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