वादा Poetry (page 8)

जमेगी कैसे बिसात-ए-याराँ कि शीशा ओ जाम बुझ गए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़रा मोहतात होना चाहिए था

फ़हमी बदायूनी

मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया

फ़ाएज़ देहलवी

और कुछ देर सितारो ठहरो

एहसान दानिश

कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं

एहसान दानिश

जब भी ख़ल्वत में वो याद आएगा

एहसान दानिश

आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब

दाऊद औरंगाबादी

देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा

दाग़ देहलवी

जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

इधर देख लेना उधर देख लेना

दाग़ देहलवी

होश आते ही हसीनों को क़यामत आई

दाग़ देहलवी

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया

दाग़ देहलवी

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती

चराग़ हसन हसरत

या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता

चराग़ हसन हसरत

अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती

बूम मेरठी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

आईने से पर्दा कर के देखा जाए

भारत भूषण पन्त

सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से

बेख़ुद देहलवी

न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा

बेख़ुद देहलवी

अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो

बेख़ुद देहलवी

अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था

बेख़ुद देहलवी

उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ

बेखुद बदायुनी

तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो

बेदम शाह वारसी

न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे

बेदम शाह वारसी

दिल अब उस दिल-शिकन के पास कहाँ

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

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