उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
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दुश्मन जवानियों की ये आश्नाइयाँ हैं
या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
दिल बला से निसार हो जाए
ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए
जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है
इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई
रात की बात का मज़कूर ही क्या
क़ुबूल इस बारगह में इल्तिजा कोई नहीं होती