समय Poetry (page 40)

न ग़रज़ नंग से रखते हैं न कुछ नाम से काम

हसरत अज़ीमाबादी

कब तलक पीवेगा तू तर-दामनों से मिल के मुल

हसरत अज़ीमाबादी

दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का

हसरत अज़ीमाबादी

ये उस की मर्ज़ी कि मैं उस का इंतिख़ाब न था

हाशिम रज़ा जलालपुरी

ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए

हसीब सोज़

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में

हसन रिज़वी

वो जो दर्द था तिरे इश्क़ का वही हर्फ़ हर्फ़-ए-सुख़न में है

हसन नईम

रात गुज़री कि शब-ए-वस्ल का पैग़ाम मिला

हसन नईम

जब कभी मेरे क़दम सू-ए-चमन आए हैं

हसन नईम

एक भी हर्फ़ न था ख़ुश-ख़बरी का लिक्खा

हसन नईम

आरज़ू थी कि तिरा दहर भी शोहरा होवे

हसन नईम

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

नज़र में मंज़र-ए-रफ़्ता समा भी सकता है

हसन जमील

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले

हसन बरेलवी

आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का

हसन बरेलवी

कमाँ उठाओ कि हैं सामने निशाने बहुत

हसन अज़ीज़

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

सीने में चराग़ जल रहा है

हसन अख्तर जलील

शब की दहलीज़ से किस हाथ ने फेंका पत्थर

हसन अख्तर जलील

माज़ी में रह जाने वाली आँखें

हसन अकबर कमाल

हुनर जो तालिब-ए-ज़र हो हुनर नहीं रहता

हसन अकबर कमाल

दुख उठाओ कितने ही घर बहार करने में

हसन अकबर कमाल

हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है

हसन अब्बास रज़ा

आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद

हसन अब्बास रज़ा

वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए

हसन आबिद

क्या कहिए

हारिस ख़लीक़

अली-मोहसिन एम.बी.ए, ख़ालिद-बिन-वलीद रोड

हारिस ख़लीक़

ज़िंदगी अब रहे ख़ता कब तक

हरी मेहता

उन्हें देखा तो ज़ाहिद ने कहा ईमान की ये है

हरी चंद अख़्तर

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