समय Poetry (page 3)

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ज़िया जालंधरी

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

ज़िया जालंधरी

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

ज़िया जालंधरी

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

ज़िया जालंधरी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

विर्सा

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

डरो उस वक़्त से

ज़ेहरा निगाह

बिल्ली

ज़ेहरा निगाह

अब तो कुछ ऐसा लगता है

ज़ेहरा निगाह

यूँ कहने को पैराया-ए-इज़हार बहुत है

ज़ेहरा निगाह

क़ुर्बतों से कब तलक अपने को बहलाएँगे हम

ज़ेहरा निगाह

बैठे बैठे कैसा दिल घबरा जाता है

ज़ेहरा निगाह

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

मिडिल-क्लास

ज़ेहरा अलवी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

किताबी कीड़े

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

ईरीना

ज़ीशान साहिल

हमारे ख़्वाब कहीं नहीं हैं

ज़ीशान साहिल

हल्की और भारी चीज़ें

ज़ीशान साहिल

गड़ही मेरा

ज़ीशान साहिल

दहशत-गर्द शायर

ज़ीशान साहिल

अवाम

ज़ीशान साहिल

वक़्त की बर्फ़ है हर तौर पिघलने वाली

ज़ीशान साजिद

कब तक वो मोहब्बत को निभाता नज़र आता

ज़ीशान साजिद

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