समय Poetry (page 2)

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रात गुज़री न कम सितारे हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

अश्क गिरने की सदा आई है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

फ़रज़ाना हूँ और नब्ज़-शनास-ए-दो-जहाँ हूँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

वाक़िआ कोई तो हो जाता सँभलने के लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

अभी मुझ से किसी को मोहब्बत नहीं हुई

ज़ियाउल हसन

कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

इतनी शिद्दत से गले मुझ को लगाया हुआ है

ज़िया ज़मीर

हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम

ज़िया ज़मीर

हाँ मुझ पे सितम भी हैं बहुत वक़्त के लेकिन

ज़िया जालंधरी

टाइपिस्ट

ज़िया जालंधरी

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

अबुल-हौल

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

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