समय Poetry (page 5)

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

निकाह कर नहीं सकती वो मुझ फ़क़ीर के साथ

ज़फ़र कमाली

हँसी में हक़ जता कर घर-जमाई छीन लेता है

ज़फ़र कमाली

हो चुकी हिजरत तो फिर क्या फ़र्ज़ है घर देखना

ज़फ़र कलीम

बख़्त जागे तो जहाँ-दीदा सी हो जाती है

ज़फ़र कलीम

कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

एक इक पल तिरा नायाब भी हो सकता है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ

ज़फ़र इक़बाल

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

सिर्फ़ आँखें थीं अभी उन में इशारे नहीं थे

ज़फ़र इक़बाल

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

ज़फ़र इक़बाल

पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है

ज़फ़र इक़बाल

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

ज़फ़र इक़बाल

कुछ भी न उस की ज़ीनत-ओ-ज़ेबाई से हुआ

ज़फ़र इक़बाल

किसी नई तरहा की रवानी में जा रहा था

ज़फ़र इक़बाल

जो बंदा-ए-ख़ुदा था ख़ुदा होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का

ज़फ़र इक़बाल

क्यूँ मैं हाइल हो जाता हूँ अपनी ही तन्हाई में

ज़फ़र हमीदी

बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा

ज़फ़र गौरी

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है

ज़फ़र अज्मी

ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है

ज़फ़र अज्मी

आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह

ज़फ़र अज्मी

वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था

यूसुफ़ तक़ी

उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है

यूसुफ़ तक़ी

पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे

यूसुफ़ तक़ी

मैं वक़्त के कोहराम में खो जाऊँ तो क्या ग़म

यूसुफ़ आज़मी

होंटों के सहीफ़ों पे है आवाज़ का चेहरा

यूसुफ़ आज़मी

चुप रहूँ कैसे मैं बर्बाद-ए-जहाँ होने तक

यूनुस ग़ाज़ी

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