समय Poetry (page 38)

मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था

इदरीस बाबर

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

इदरीस बाबर

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए

इबरत मछलीशहरी

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

ऐ मौसम-ए-जुनूँ ये अजब तर्ज़-ए-क़त्ल है

इबरत मछलीशहरी

उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को

इबरत बहराईची

ख़याल-ए-बद से हमा-वक़्त इज्तिनाब करो

इबरत बहराईची

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ

इब्राहीम होश

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा

इक साल गया इक साल नया है आने को

इब्न-ए-इंशा

लब पर नाम किसी का भी हो

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

हुमैरा राहत

पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया

हीरानंद सोज़

हम भी हैं किसी कहफ़ के असहाब के मानिंद

हिमायत अली शाएर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर

हो चुकी अब शाइ'री लफ़्ज़ों का दफ़्तर बाँध लो

हिमायत अली शाएर

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