वसल Poetry (page 23)

ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो

अमीर मीनाई

तअल्लुक़ तोड़ने वाले

अमीक़ हनफ़ी

उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज

अमानत लखनवी

सुब्ह-ए-विसाल-ए-ज़ीस्त का नक़्शा बदल गया

अमानत लखनवी

उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत

अल्ताफ़ हुसैन हाली

रंज और रंज भी तन्हाई का

अल्ताफ़ हुसैन हाली

कह दो कोई साक़ी से कि हम मरते हैं प्यासे

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं

अल्लामा इक़बाल

ज़ौक़ ओ शौक़

अल्लामा इक़बाल

एहसास देख पाए वो मंज़र तलाश कर

अलीउद्दीन नवेद

मुर्ग़ ज़ीरक अक़्ल का है इश्क़ का सय्याद शोख़

अलीमुल्लाह

कीता कहीं पुकार ऐ ग़ाफ़िल बिया बिया

अलीमुल्लाह

जब पियारा गिला सुनाता है

अलीमुल्लाह

तिरे वस्ल पे तेरी क़ुर्बत पे ला'नत

अली इमरान

बाज़-आमद --- एक मुन्ताज

अख़्तर-उल-ईमान

ग़म का आहंग है

अख़्तर ज़ियाई

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

वक़्त की क़द्र

अख़्तर शीरानी

दावत

अख़्तर शीरानी

ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए

अख़्तर शीरानी

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

अख़्तर शीरानी

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

अख़्तर शीरानी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

जो पलकों पर मिरी ठहरा हुआ है

अख़तर शाहजहाँपुरी

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो

अख़्तर हुसैन जाफ़री

मैं उस का नाम घुले पानियों पे लिखता क्या

अख़्तर होशियारपुरी

किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल

अकबर इलाहाबादी

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