वसल Poetry (page 21)

मलाल-ए-हिज्र नहीं रंज-ए-बे-रुख़ी भी नहीं

असद जाफ़री

मौसम-ए-हिज्र तो दाइम है न रुख़्सत होगा

असअ'द बदायुनी

हम जुनूँ पेशा कि रहते थे तिरी ज़ात में गुम

अरशद महमूद नाशाद

याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल

अरशद अली ख़ान क़लक़

वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की

अरशद अली ख़ान क़लक़

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

साफ़ बातों से हो गया मा'लूम

अरशद अली ख़ान क़लक़

न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में

अरशद अली ख़ान क़लक़

हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो

अरशद अली ख़ान क़लक़

बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है

अरशद अली ख़ान क़लक़

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे

अरशद अली ख़ान क़लक़

हवा-ए-हिर्स-ओ-हवस से मफ़र भी करना है

अरशद अब्दुल हमीद

ज़िंदगी यूँ करें बसर कब तक

आरिफ़ इशतियाक़

अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसे

आरिफ़ इमाम

नफ़स की आमद-ओ-शुद को वबाल कर के भी

आरिफ़ इमाम

हर इश्क़ के मंज़र में था इक हिज्र का मंज़र

अक़ील अब्बास जाफ़री

एहसास-ए-ज़ियाँ हम में से अक्सर में नहीं था

अक़ील अब्बास जाफ़री

वो मक़्तल में अगर खींचे हुए तलवार बैठे हैं

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

सारे कुश्तों से जुदा ढंग इज़्तिराब-ए-दिल का है

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

आना भी आने वाले का अफ़्साना हो गया

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम

अनवर शऊर

हर शय को इंतिहा है यक़ीं है कि वस्ल हो

अनवर देहलवी

न मैं समझा न आप आए कहीं से

अनवर देहलवी

हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

पलकों तक आ के अश्क का सैलाब रह गया

अंजुम ख़लीक़

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