वसल Poetry (page 19)

बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रक्खा

बेगम लखनवी

तेरी उल्फ़त शोबदा-पर्वाज़ है

बेदम शाह वारसी

क़स्र-ए-जानाँ तक रसाई हो किसी तदबीर से

बेदम शाह वारसी

बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था

बेदम शाह वारसी

अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है

बेदम शाह वारसी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में

बक़ा बलूच

रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत

बख़्श लाइलपूरी

वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है

ज़फ़र

क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर

ज़फ़र

जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

दिल से आख़िर चराग़-ए-वस्ल बुझा

बाबर रहमान शाह

दिल ने हम से अजब ही काम लिया

बाबर रहमान शाह

हवा के लब पे नए इंतिसाब से कुछ हैं

अज़रा वहीद

आमादगी को वस्ल से मशरूत मत समझ

अज़्म बहज़ाद

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा

अज़्म बहज़ाद

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा

अज़्म बहज़ाद

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