कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
दूसरी बात दूसरा मतलब
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जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी