मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
कि इस में ख़ैर भी है और शर बंद
Habib Jalib
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Wasi Shah
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Mohsin Naqvi
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है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी