ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
जगाया नींद से जागा तो फिर सुला भी दिया
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कभी दर पर कभी है रस्ते में
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
अहद के साथ ये भी हो इरशाद