अहद के साथ ये भी हो इरशाद
किस तरह और कब मिलेंगे आप
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है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
कभी दर पर कभी है रस्ते में
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो