बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
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ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
अहद के साथ ये भी हो इरशाद