कभी दर पर कभी है रस्ते में
नहीं थकती है इंतिज़ार से आँख
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चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
जब मिलेंगे कि अब मिलेंगे आप
ये छेड़ क्या है ये क्या मुझ से दिल-लगी है कोई
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
अहद के साथ ये भी हो इरशाद
ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है