आमादगी को वस्ल से मशरूत मत समझ
ये देख इस सवाल पे संजीदा कौन है
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Gulzar
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Jaun Eliya
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ऐ ख़्वाब-ए-पज़ीराई तू क्यूँ मिरी आँखों में
रौशनी ढूँड के लाना कोई मुश्किल तो न था
दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है
सवाल करने के हौसले से जवाब देने के फ़ैसले तक
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा
उठो 'अज़्म' इस आतिश-ए-शौक़ को सर्द होने से रोको
कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें
अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैं
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ
मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता