वसल Poetry (page 22)
हर शे'र से मेरे तिरा पैकर निकल आए
अंजुम ख़लीक़
दिल पर यूँही चोट लगी तो कुछ दिन ख़ूब मलाल किया
अनीस अंसारी
ये गर्द-बाद-ए-तमन्ना में घूमते हुए दिन
अमजद इस्लाम अमजद
पसपा हुई सिपाह तो परचम भी हम ही थे
अमजद इस्लाम अमजद
कभी रक़्स-ए-शाम-ए-बहार में उसे देखते
अमजद इस्लाम अमजद
जब भी आँखों में तिरे वस्ल का लम्हा चमका
अमजद इस्लाम अमजद
हुज़ूर-ए-यार में हर्फ़ इल्तिजा के रक्खे थे
अमजद इस्लाम अमजद
एक आज़ार हुई जाती है शोहरत हम को
अमजद इस्लाम अमजद
बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से
अमीरुल्लाह तस्लीम
वस्ल में बिगड़े बने यार के अक्सर गेसू
अमीरुल्लाह तस्लीम
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा
अमीरुल्लाह तस्लीम
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
अमीर हम्ज़ा साक़िब
हैरान बहुत ताबिश-ए-हुस्न-दीगराँ थी
अमीर हम्ज़ा साक़िब
हया गिरती हुई दीवार थी कल शब जहाँ मैं था
अमीरुल इस्लाम हाशमी
वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
अमीर मीनाई
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
अमीर मीनाई
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
अमीर मीनाई
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
अमीर मीनाई
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
अमीर मीनाई
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
अमीर मीनाई
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
अमीर मीनाई
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
अमीर मीनाई
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना
अमीर मीनाई
न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का
अमीर मीनाई
मुझ मस्त को मय की बू बहुत है
अमीर मीनाई
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता
अमीर मीनाई
क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़
अमीर मीनाई
कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था
अमीर मीनाई
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
अमीर मीनाई
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