याद Poetry (page 2)

मोहब्बत अब नहीं होगी

मुनीर नियाज़ी

पहचान

फ़ैसल हाश्मी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

तेरी याद

इमरान शनावर

इम्कान

फ़ैसल हाश्मी

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

सर्द आहों ने मिरे ज़ख़्मों को आबाद किया

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

बे-मुरव्वत हैं तो वापस ही उठा ले शब-ओ-रोज़

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

अँधेरों से उलझने की कोई तदबीर करना है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हम ने सारे हर्फ़ लिखे तो किस के लिए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

इश्क़ में मारके बला के रहे

ज़ुहूर नज़र

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

शाम-ए-ग़म याद नहीं सुब्ह-ए-तरब याद नहीं

ज़ुहैर कंजाही

सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

रात फिर दर्द बनी

ज़ुबैर रिज़वी

दूसरा आदमी

ज़ुबैर रिज़वी

ऐसा क्यूँ होता है

ज़ुबैर रिज़वी

वो आ गया तो सारा परी-ख़ाना जी उठा

ज़ुबैर रिज़वी

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