याद Poetry (page 97)

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

अब्बास ताबिश

हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है

अब्बास ताबिश

चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया

अब्बास ताबिश

बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है

अब्बास ताबिश

अजीब तौर की है अब के सरगिरानी मिरी

अब्बास ताबिश

कोई सुबूत-ए-जुर्म जगह पर नहीं मिला

अब्बास दाना

थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई

आज़िम कोहली

मिरी यादें भला तुम किस तरह दिल से मिटाओगे

आज़िम कोहली

इक इश्क़ है कि जिस की गली जा रहा हूँ मैं

आज़िम कोहली

तुम्हारी याद का साया न होगा

आसिम शहनवाज़ शिबली

तुझे हम याद हर-दम ऐ सितम ईजाद करते हैं

आसी रामनगरी

मंज़िल पे ले के पहुँचेगा अज़्म-ए-जवाँ मुझे

आसी रामनगरी

बाब-ए-क़फ़स खुलने को खुला है

आसी रामनगरी

ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

तुझ को भी क्यूँ याद रखा

आशुफ़्ता चंगेज़ी

क़िस्सा-गो

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

इतना क्यूँ शरमाते हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी

आनन्द सरूप अंजुम

नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना

आनन्द सरूप अंजुम

अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है

आमिर सुहैल

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है

आलोक श्रीवास्तव

तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं

आलोक श्रीवास्तव

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई

आल-ए-अहमद सूरूर

जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी

आल-ए-अहमद सूरूर

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