याद Poetry (page 3)

तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था

ज़ुबैर रिज़वी

शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में

ज़ुबैर रिज़वी

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

हमारी गर्दिश-ए-पा रास्तों के काम आई

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना

ज़ुबैर अमरोहवी

हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना

ज़ुबैर अमरोहवी

पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी

ज़ुबैर अली ताबिश

क़ुर्बतों के ये सिलसिले भी हैं

ज़िया शबनमी

सफ़र हो रेल-गाड़ी का तो छके छूट जाते हैं

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

सफ़र मुझ पर अजब बरपा रही है

ज़िया ज़मीर

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

ज़िया ज़मीर

आख़िरश कर लिया क़ुबूल हमें

ज़िया ज़मीर

इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है

ज़िया जालंधरी

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

आँसू

ज़िया जालंधरी

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए

ज़िया जालंधरी

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

ज़िया जालंधरी

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

ज़िया जालंधरी

छेड़ी भी जो रस्म-ओ-राह की बात

ज़िया जालंधरी

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

ज़िया जालंधरी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

दिल अपना सैद-ए-तमन्ना है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

ये उदासी ये फैलते साए

ज़ेहरा निगाह

देखो तो लगता है जैसे देखा था

ज़ेहरा निगाह

गुल-चाँदनी

ज़ेहरा निगाह

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