कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं
हयात दूर तलक हम से हम-कलाम आई
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शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है
फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए
शरीफ़-ज़ादा
नया जन्म
कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए
भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
बे-कराँ
शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में
अंजाम क़िस्सा-गो का