याद Poetry (page 43)

दिल के ज़ख़्मों को हरा करते हैं

रईस सिद्दीक़ी

घर मुझे रात भर डराए गया

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू

रईस अमरोहवी

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है

रईस अमरोहवी

कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई

रईस अमरोहवी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

गर्द में अट रहे हैं एहसासात

रईस अमरोहवी

दिल से या गुल्सिताँ से आती है

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल उन की याद से जो बहलता चला गया

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

आरज़ूओं का नगर छोड़ आए

रहमत अमरोहवी

शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है

राही शहाबी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

अहद-ए-गुम-गश्ता की निशानी हूँ

राही कुरैशी

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें

राही मासूम रज़ा

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

जूही का पौदा

राही मासूम रज़ा

रास्ते अपनी नज़र बदला किए

राही मासूम रज़ा

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं

राही मासूम रज़ा

हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग

राही मासूम रज़ा

ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ

राही मासूम रज़ा

तेरे कूचे में जा के भूल गए

राहील फ़ारूक़

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है

इरफ़ान सत्तार

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

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