याद Poetry (page 41)

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

बाज़ भी आओ याद आने से

राशिद आज़र

इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी

राशिदा माहीन मलिक

तुझ से वहशत में भी ग़ाफ़िल कब तिरा दीवाना था

रशीद रामपुरी

ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं

रशीद रामपुरी

तुझ से भी हसीं है तिरे अफ़्कार का रिश्ता

रशीद क़ैसरानी

मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया

रशीद निसार

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

जब से सुना दहन तिरे ऐ माह-रू नहीं

रशीद लखनवी

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

है अंधेरा तो समझता हूँ शब-ए-गेसू है

रशीद लखनवी

बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को

रशीद लखनवी

ये किस को जाग जाग के तारों की छाँव में

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

किसे है लौह-ए-वक़्त पर दवाम सोचते रहे

रशीद कामिल

बहुत दिनों से कोई हादसा नहीं गुज़रा

रसा चुग़ताई

हवा की चादर-ए-सद-चाक ओढ़े जा रहे हैं

रऊफ़ अमीर

रोता हमें जो देखा दिल उस का पिघल गया

रंजूर अज़ीमाबादी

ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

हमदमो क्या मुझ को तुम उन से मिला सकते नहीं

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

राना सहरी

रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ

राणा गन्नौरी

हम ने दुनिया से सुलूक ऐसा किया है 'राना'

राणा गन्नौरी

जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है

राना आमिर लियाक़त

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

रम्ज़ी असीम

कुछ इस अदा से सफ़ीरान-ए-नौ-बहार चले

रम्ज़ अज़ीमाबादी

इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा

रमेश कँवल

अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ

राम रियाज़

ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

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