यार Poetry (page 37)

उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में

हादी मछलीशहरी

महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा

हादी मछलीशहरी

खोया हुआ सा रहता हूँ अक्सर मैं इश्क़ में

हादी मछलीशहरी

मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी

हबीब तनवीर

मुशीर

हबीब जालिब

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ

हबीब जालिब

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'

हबीब जालिब

दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या

हबीब जालिब

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

हबीब मूसवी

रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी

हबीब मूसवी

किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर

हबीब मूसवी

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

हबीब मूसवी

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

हबीब मूसवी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

हबीब मूसवी

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

हबीब मूसवी

दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस

हबीब मूसवी

ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

गिरहें

गुलज़ार

कभी हाथ भी आएगा यार सच कह

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

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