यार Poetry (page 38)

गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ये इक तेरा जल्वा सनम चार सू है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दौर-ए-फ़लक के शिकवे गिले रोज़गार के

गोपाल मित्तल

नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

दिल के हर जुज़्व में जुदाई है

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

मुहीत-ए-हुस्न जो अब दम-ब-दम चढ़ाव पे है

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

जाते हैं वहाँ से गर कहीं हम

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए

ग़मगीन देहलवी

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