यार Poetry (page 39)

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा

ग़मगीन देहलवी

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ

ग़ालिब

सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम

ग़ालिब

गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं

ग़ालिब

बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में

ग़ालिब

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो

ग़ालिब

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