यार Poetry (page 63)

हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया

आग़ा हज्जू शरफ़

हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ

अफ़ज़ल परवेज़

मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ

अफ़ज़ल ख़ान

शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना

अफ़ज़ल ख़ान

अपनी तन्हाइयों के ग़ार में हूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

मेरे गले से आन के प्यारा जो फिर लगे

आफ़ताब शाह आलम सानी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

मैं सोचता हूँ अगर इस तरफ़ वो आ जाता

आफ़ताब हुसैन

तेरी ख़ुशबू का तराशा है ये पैकर किस ने

अफ़सर आज़री

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो

अदीम हाशमी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया

अबु मोहम्मद वासिल

क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़

आबरू शाह मुबारक

रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला

आबरू शाह मुबारक

पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता

आबरू शाह मुबारक

ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा

आबरू शाह मुबारक

कनहय्या की तरह प्यारे तिरी अँखियाँ ये साँवरियाँ

आबरू शाह मुबारक

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

आबरू शाह मुबारक

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