जाति Poetry (page 23)

मैं अपनी ज़ात की तशरीह करता फिरता था

अख़्तर होशियारपुरी

वो जो दीवार-ए-आश्नाई थी

अख़्तर होशियारपुरी

थी तितलियों के तआ'क़ुब में ज़िंदगी मेरी

अख़्तर होशियारपुरी

फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए

अख़्तर होशियारपुरी

पहले तो सोच के दोज़ख़ में जलाता है मुझे

अख़्तर होशियारपुरी

न जब कोई शरीक-ए-ज़ात होगा

अख़्तर होशियारपुरी

दश्त-दर-दश्त अक्स-ए-दर है यहाँ

अख़्तर होशियारपुरी

चेहरे के ख़द्द-ओ-ख़ाल में आईने जड़े हैं

अख़्तर होशियारपुरी

बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है

अख़्तर होशियारपुरी

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

कौन सुनता है सिर्फ़ ज़ात की बात

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

कभी तो डूब चले हम कभी उभरते हुए

अखिलेश तिवारी

मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब

अकबर हैदराबादी

हिसार-अंदर-हिसार

अकबर हैदराबादी

कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था

अकबर हैदराबादी

जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है

अकबर हैदराबादी

बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था

अकबर हैदराबादी

बुझ गया रात वो सितारा भी

अजमल सिराज

मुख़ालिफ़ आँधियों में अज़्म के दीपक जलाता हूँ

अजीत सिंह हसरत

अगर फ़क़ीर से मिलना है तो सँभल पहले

अजीत सिंह हसरत

वो जो फूल थे तिरी याद के तह-ए-दस्त-ए-ख़ार चले गए

अजय सहाब

बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ

अजय सहाब

तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं

ऐतबार साजिद

छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं

ऐतबार साजिद

छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ

ऐतबार साजिद

मैं हँस रहा था गरचे मिरे दिल में दर्द था

ऐश बर्नी

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

ऐनुद्दीन आज़िम

हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं

ऐन इरफ़ान

घर घर आपस में दुश्मनी भी है

अहसन यूसुफ़ ज़ई

क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता

अहसन मारहरवी

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