जाति Poetry (page 21)

उन से तन्हाई में बात होती रही

अनवर शऊर

न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं

अनवर शऊर

कुछ दिनों अपने घर रहा हूँ मैं

अनवर शऊर

कुछ दिन तो कर तआ'वुन ऐ ख़ुश-सिफ़ात मुझ से

अनवर शऊर

काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए

अनवर शऊर

कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए

अनवर शऊर

और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे

अनवर शऊर

उन की महफ़िल में हमेशा से यही देखा रिवाज

अनवर साबरी

दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को

अंजुम सलीमी

अच्छे मौसम में तग-ओ-ताज़ भी कर लेता हूँ

अंजुम सलीमी

कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है

अंजुम ख़लीक़

बुज़दिल

अमजद इस्लाम अमजद

तारा तारा उतर रही है रात समुंदर में

अमजद इस्लाम अमजद

लम्स-ए-यक़ीन अपना कहाँ पेश-ओ-पस में था

आमिर नज़र

फ़िशार-ए-तीरह-शबी से सहर निकल आए

आमिर नज़र

दिन को कह दें रात हम समझे नहीं

आमिर मौसवी

तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का

अमीर हम्ज़ा साक़िब

सबा बनाते हैं ग़ुंचा-दहन बनाते हैं

अमीर हम्ज़ा साक़िब

इक छोड़ो हो इक और जो मिस मात करो हो

अमीरुल इस्लाम हाशमी

दामन पे लहू हाथ में ख़ंजर न मिलेगा

अमीर क़ज़लबाश

वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है

अमीर मीनाई

बन के साया ही सही सात तो होती होगी

अमीर इमाम

तशन्नुज

अमीक़ हनफ़ी

आईना-ख़ाने के क़ैदी से

अमीक़ हनफ़ी

है नूर-ए-ख़ुदा भी यहाँ इरफ़ान-ए-ख़ुदा भी

अमीक़ हनफ़ी

जो दुहाई दे रहा है कोई सौदाई न हो

अमीन राहत चुग़ताई

दस्तरस

अम्बरीन सलाहुद्दीन

क्यूँ अम्बर की पहनाई में चुप की राह टटोलें

अम्बरीन सलाहुद्दीन

इस आरज़ी दुनिया में हर बात अधूरी है

अंबरीन हसीब अंबर

क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली'

अल्ताफ़ हुसैन हाली

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