जाति Poetry (page 9)

मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा

साक़ी फ़ारुक़ी

मदरसा मेरा मेरी ज़ात में है

साक़ी अमरोहवी

शरह-ए-ग़म हाए बे-हिसाब हूँ मैं

साक़ी अमरोहवी

आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं

सलीम शुजाअ अंसारी

कनार-ए-आब तिरे पैरहन बदलने का

सालिम सलीम

काम हर रोज़ ये होता है किस आसानी से

सालिम सलीम

हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला

सालिम सलीम

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

सालिम सलीम

दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं

सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है

सालिम सलीम

सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में

सलीम शहज़ाद

बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है

सलीम शहज़ाद

कम रंज मौसम-ए-गुल-ए-तर ने नहीं दिया

सलीम फ़राज़

उन को जल्वत की हवस महफ़िल में तन्हा कर गई

सलीम अहमद

नया मज़मूँ किताब-ए-ज़ीस्त का हूँ

सलीम अहमद

इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन

सलीम अहमद

मैं तो कहता हूँ तुम्ही दर्द के दरमाँ हो ज़रूर

सलाम मछली शहरी

आरज़ूओं का हसीं पैकर तराश

सज्जाद सय्यद

उसे मैं तलाश कहाँ करूँ वो उरूज है मैं ज़वाल हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तुझे खो कर मोहब्बत को ज़ियादा कर लिया मैं ने

सज्जाद बलूच

तुझे खो कर मोहब्बत को ज़ियादा कर लिया मैं ने

सज्जाद बलूच

किश्त-ए-वीराँ की तरह तिश्ना रही रात मिरी

साजिदा ज़ैदी

जो महव-ए-हालात नहीं है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

मग़रूर थे अपनी ज़ात पर हम

सैफ़ुद्दीन सैफ़

ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

साहिर लुधियानवी

फ़नकार

साहिर लुधियानवी

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