जाति Poetry (page 8)

अजीब रुत थी बरसती हुई घटाएँ थीं

शफ़ी अक़ील

मिरा जीना गवाही दे रहा है

शबनम शकील

हम-नशीनो कुछ नहीं रक्खा यहाँ पर कुछ नहीं

शबनम शकील

गए बरस की यही बात यादगार रही

शबनम शकील

शब-चराग़ कर मुझ को ऐ ख़ुदा अँधेरे में

शबनम रूमानी

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था

शबाना यूसुफ़

आ गया है वक़्त अब भुगतोगे ख़ामियाज़े बहुत

शबाब ललित

जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है

शानुल हक़ हक़्क़ी

मैं अगर फ़िक्र के शह-पर से अलग हो जाऊँ

सीन शीन आलम

जब भी भूले से कभी लब पे हँसी आई है

सीमाब सुल्तानपुरी

मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ

सीमा ग़ज़ल

ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की

सय्यद आशूर काज़मी

यक़ीन मर गया मिरा गुमान भी नहीं बचा

सौरभ शेखर

फूटे मन से बोल, लगा ये ज़िंदा हूँ मैं

सौरभ शेखर

हिर्स-ओ-हवस के नाम ये दिन रात की तलब

सौरभ शेखर

तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया

सऊद उस्मानी

सलीब लाद के काँधे पे चल रहा हूँ मैं

सत्य नन्द जावा

मिरे जज़्बों को ये लफ़्ज़ों की बंदिश मार देती है

सरवत ज़ेहरा

तुम्हारी मुंतज़िर यूँ तो हज़ारों घर बनाती हूँ

सरवत ज़ेहरा

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मेरा शुमार कर ले अदद के बग़ैर भी

सरदार अयाग़

कोई शिकवा नहीं हम को किसी से

सदार आसिफ़

न जाने कैसी आँधी चल रही है

सदार आसिफ़

मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं

साक़ी फ़ारुक़ी

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