मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
वो अपनी ज़ात से बाहर कहीं मिले तो सही
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डिकलाइन
सर्द होते हुए वजूद में बस
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
शिकायत
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है