सर्द होते हुए वजूद में बस
कुछ नहीं था अलाव आँखें थीं
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(519) Peoples Rate This
शिकायत
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
परिंदा
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ