मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
कम से कम ये तो मिरे चाहने वाले करते
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(536) Peoples Rate This
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
डिकलाइन
परिंदा
ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
सर्द होते हुए वजूद में बस
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा