जाति Poetry (page 10)

पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने

साहिर लुधियानवी

अपनी अपनी ज़ात में गुम हैं अहल-ए-दिल भी अहल-ए-नज़र भी

साहिर होशियारपुरी

तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

साहिर होशियारपुरी

शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें

साहिर होशियारपुरी

तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं

साहिर देहल्वी

मस्त-ए-निगाह-ए-नाज़ का अरमाँ निकालिए

साहिर देहल्वी

जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है

साहिर देहल्वी

फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी

साहिर देहल्वी

चार उंसुर से बना है जिस्म-ए-पाक

साहिर देहल्वी

विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं

सहर अंसारी

महसूस क्यूँ न हो मुझे बेगानगी बहुत

सहर अंसारी

मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर

साग़र सिद्दीक़ी

मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया

साग़र सिद्दीक़ी

हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते

साग़र निज़ामी

उस्ताद मर गए

साग़र ख़य्यामी

दिल्ली की लड़कियाँ

साग़र ख़य्यामी

क्रिकेट मैच

साग़र ख़य्यामी

दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो

साग़र ख़य्यामी

मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ

सईद क़ैस

शाम के आसार गीले हैं बहुत

सईद क़ैस

हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है

सईद क़ैस

जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ

सईद नक़वी

दोहरी शहरियत

सईद नक़वी

अपनी तलाश में निकले

सईद नक़वी

वरक़ वरक़ से नया इक जवाब माँगूँ मैं

सईद नक़वी

रस्ते लपेट कर सभी मंज़िल पे लाए हैं

सईद नक़वी

मैं दोस्त से न किसी दुश्मनी से डरता हूँ

सईद नक़वी

किया है ख़ुद ही गिराँ ज़ीस्त का सफ़र मैं ने

सईद नक़वी

फ़सील-ए-ज़ात में दर तो तिरी इनायत है

सईद नक़वी

तज़ादों से इबारत

सईद अहमद

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