दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
दिल दे दिया है आप को अंजाम कुछ भी हो
दिल को यक़ीं है जज़्बा-ए-दीदार की क़सम
वो आएगा ज़रूर सर-ए-बाम कुछ भी हो
आँधी की ज़द पे रख तो दिया है चराग़-ए-दिल
रौशन रहे कि गुल हो सर-ए-शाम कुछ भी हो
दिल को तो ए'तिमाद है साक़ी की ज़ात पर
अब ज़हर दे कि वो मय-ए-गुलफ़ाम कुछ भी हो
'साग़र' ने दिल को रख तो दिया है तिरे हुज़ूर
बे-नाम अब रहे या मिले नाम कुछ भी हो
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