बोला दुकान-दार कि क्या चाहिए तुम्हें
जो भी कहोगे मेरी दुकाँ पर वो पाओगे
मैं ने कहा कि कुत्ते के खाने का केक है
बोला यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे
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इक शब हमारे बज़्म में जूते जो खो गए
दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो
जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
अब इश्क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजे
बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के
दिल्ली की लड़कियाँ
मैं ने पूछा ये एक शाएर से
मह-जबीनो पास आओ और ये बतलाओ हमें
'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम
गिर्या-ए-शैताँ
रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले