देख के बोला हाथ मुनज्जम
गंडा देना ज़ेब नहीं है
कैसे कह दूँ सर पर तेरे
बीवी है आसेब नहीं है
Gulzar
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उस्ताद मर गए
नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या खो गया
उस वक़्त मुझ को दावत-ए-जाम-ओ-सुबू मिली
ख़ुद तो कभी न आएगी होंटों पे अब हँसी
मह-जबीनो पास आओ और ये बतलाओ हमें
रोटी कपड़ा और मकान
दिल्ली की बस
गधों का मुशाएरे
रहेगा प्यासों से पानी का फ़ासला कब तक
'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
अब इश्क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजे
आशिक़ जो चाहते थे वही काम हो गया