'साग़र' किसे बताइए ये वोल्टेज का हाल
आँखों में है ग़मों का अँधेरा घुटा हुआ
शब भर मैं टार्च डाल के ये देखता रहा
बिजली का बल्ब जलता है या है बुझा हुआ
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तस्वीर आज देख के अहद-ए-शबाब की
हुस्न ही हुस्न का हर शहर में जल्वा होता
पड़ोसी की मुर्ग़ियाँ
इंजीनियर करेंगे अगर डॉक्टर का काम
मुद्दत हुई है बिछड़े हुए अपने-आप से
वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ लड़ा लेते थे
न लिक्खो वस्ल की राहत सलीब लिख डालो
आशिक़ जो चाहते थे वही काम हो गया
दिल्ली की लड़कियाँ
बारिशें नहीं होतीं
जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
रहेगा प्यासों से पानी का फ़ासला कब तक