पड़ोसी की मुर्ग़ियाँ
अमरीका ऐसा देस है यारान-ए-तेज़-गाम
जज़्बात तो बहुत हैं मोहब्बत बरा-ए-नाम
सर पर सुनहरे बाल, बदन दूध, होंट जाम
हर लब पे आई-लव है मगर आशिक़ी हराम
अल्लाह ही जाने कौन सी चक्की का खाते हैं
सत्तर बरस के सिन में भी आँखें लड़ाते हैं
बरसीं बदन पे टूट के जब भूरी बदलियाँ
ईमाँ सफ़ेद पड़ गए जब देखीं गोरियाँ
हैं शैख़ को पसंद पड़ोसी की मुर्ग़ियाँ
सर पर कुलाह नाफ़ तलक लम्बी दाढ़ियाँ
चेहरे तो झुर्रियों से भरे दिल जवान हैं
दिन में हैं शैख़ रात में सलमान-ख़ान हैं
क़ुदरत के दस्त-ए-नाज़ का 'साग़र' कमाल हैं
जो ख़्वाब में न आए वो ऐसा ख़याल हैं
नीचे से ले के टॉप तलक माला-माल हैं
चाँदी के पाँव दोस्तो सोने के बाल हैं
जो रंग-रूप उन में है वो देसी में नहीं
जो पेप्सी में लुत्फ़ है वो लस्सी में नहीं
मख़मल पे जिस के पाँव छिलें वो चले कहाँ
सुर्ख़ी-ए-पाँ दिखाई दे ऐसे गले कहाँ
बादल ज़मीं पे झुक गए गेसू ढले कहाँ
ग़ैरों में हुस्न-ओ-इश्क़ के ये सिलसिले कहाँ
सौदा मोहब्बतों का भरा सर-फिरों में है
उस इश्क़ को सलाम जो कच्चे घड़ों में है
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