न लिक्खो वस्ल की राहत सलीब लिख डालो
कोई तो बात अजीब-ओ-ग़रीब लिख डालो
दबाए बैठी हो जो अपने नर्म हाथों में
उसी क़लम से हमारा नसीब लिख डालो
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Gulzar
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Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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नवादिरात की दूकान
बोला दुकान-दार कि क्या चाहिए तुम्हें
हुस्न ही हुस्न का हर शहर में जल्वा होता
सारी जफ़ाएँ सारे करम याद आ गए
इंजीनियर करेंगे अगर डॉक्टर का काम
इक्कीसवीं सदी का आदमी
'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी
क्रिकेट मैच
बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के
कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को
मुद्दत हुई है बिछड़े हुए अपने-आप से