जाति Poetry (page 7)

शक अपनी ही ज़ात पे होने लगता है

शहज़ाद अहमद

वैसे तो इक दूसरे की सब सुनते हैं

शहज़ाद अहमद

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

शहज़ाद अहमद

इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो

शहज़ाद अहमद

चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया

शहज़ाद अहमद

तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को

शहरयार

तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को

शहरयार

जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था

शहरयार

शिकस्त

शहराम सर्मदी

मैं वापस आऊँगा

शहराम सर्मदी

हमारे ज़ेहन में ये बात भी नहीं आई

शहराम सर्मदी

फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता

शहराम सर्मदी

मुन्तज़िम

शहनाज़ नबी

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के

शहनवाज़ ज़ैदी

ख़ुशियाँ मत दे मुझ को दर्द-ओ-कैफ़ की दौलत दे साईं

शाहिद कमाल

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

अक्स आईना-ख़ाना से अलग रक्खा है

शाहिद कमाल

किताब-ए-दिल के वरक़ जो उलट के देखता है

शाहिद जमाल

फिर उसी शोख़ की तस्वीर उतर आई है

शाहिद इश्क़ी

न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई

शाहिद इश्क़ी

ग़ैर की आग में कोई भी न जलना चाहे

शाहिद इश्क़ी

दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

कड़े हैं हिज्र के लम्हात उस से कह देना

शहबाज़ ख़्वाजा

भटक रहे हैं ग़म-ए-आगही के मारे हुए

शहबाज़ ख़्वाजा

समुंदर का रास्ता

शहाब अख़्तर

ब-चशम-ए-हक़ीक़त जहाँ देखता हूँ

शाह आसिम

अगर वो हम-सफ़र ठहरें तो हम को डर में रखते हैं

शफ़ीक़ आसिफ़

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