जाति Poetry (page 5)

जाने क्यूँ बातों से जलते हैं गिले करते हैं लोग

सुलतान रशक

धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल

सुलतान रशक

अजब इंसान हूँ ख़ुश-फ़हमियों के घर में रहता हूँ

सुलतान रशक

झिजक रहा हूँ उसे आश्कार करते हुए

सुलतान निज़ामी

वो सर से पाँव तलक चाहतों में डूबा था

सुलेमान ख़ुमार

निज़ाम-ए-शम्स-ओ-क़मर कितने दस्त-ए-ख़ाक में हैं

सुलैमान अरीब

डोर

सुबोध लाल साक़ी

यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

आलम के दोस्तों में मुरव्वत नहीं रही

सिराज औरंगाबादी

ना-ख़लफ़ मिज़ाज की मुसद्दक़ा तस्लीमात

सिदरा सहर इमरान

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

सिद्दीक़ मुजीबी

झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

जो दिल की बारगाह में तजल्लियाँ दिखा गया

सिद्दीक़ा शबनम

आँधी चली तो गर्द से हर चीज़ अट गई

सिब्त अली सबा

ख़ुदाया हिन्द पर तेरी इनायत हो इनायत हो

श्याम सुंदर लाल बर्क़

मैं किसी की रात का तन्हा चराग़

शुमाइला बहज़ाद

हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ

शुजा ख़ावर

औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले

शुजा ख़ावर

यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है

शुजा ख़ावर

तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के

शुजा ख़ावर

सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई

शुजा ख़ावर

रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम

शुजा ख़ावर

निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई

शुजा ख़ावर

हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना

शुजा ख़ावर

गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा

शुजा ख़ावर

दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत

शुजा ख़ावर

बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका

शुजा ख़ावर

एहसास की दीवार गिरा दी है चला जा

शोज़ेब काशिर

गुज़र जाएँगे ये दिन बेबसी के

शोभा कुक्कल

देखो न ज़ात पात न नाम-ओ-नसब 'शिफ़ा'

शिफ़ा कजगावन्वी

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