ज़बां Poetry (page 24)

ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है

फ़सीह अकमल

इसी फ़ुतूर में कर्ब-ओ-बला से लिपटे हुए

फ़रियाद आज़र

हाँ कभी रूह को नख़चीर नहीं कर सकता

फ़रताश सय्यद

लकीरें

फर्रुख यार

ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर

फ़ारूक़ शफ़क़

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या

फ़ारूक़ नाज़की

आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

इस ज़मीं आसमाँ के थे ही नहीं

फ़ारूक़ बख़्शी

जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है

फ़ारूक़ अंजुम

मंसूर से कम नहीं है वो भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही

फ़ारिग़ बुख़ारी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर

फ़रहत कानपुरी

शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ

फ़रहत एहसास

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

दिनी हैं सब कोई राती नहीं है

फ़रहत एहसास

है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार

फ़रहान सालिम

मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो

फ़रहान सालिम

कहीं यक़ीं से न हो जाएँ हम गुमाँ की तरह

फ़रह इक़बाल

यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं

फ़राग़ रोहवी

कभी यक़ीं से हुई और कभी गुमाँ से हुई

फ़राग़ रोहवी

या कहते थे कुछ कहते जब उस ने कहा कहिए

फ़ानी बदायुनी

होते हैं राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इसी से फ़ाश

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

मुझ पे रखते हैं हश्र में इल्ज़ाम

फ़ानी बदायुनी

लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं

फ़ानी बदायुनी

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