ज़बां Poetry (page 22)

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

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गुलज़ार

फूलों की तरह लब खोल कभी

गुलज़ार

'गुलनार' मस्लहत की ज़बाँ में न बात कर

गुलनार आफ़रीन

शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है

गुलनार आफ़रीन

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा

गोविन्द गुलशन

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

बहुत वाक़िफ़ हैं लब-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ से

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

कि दर गुफ़्तन नमी आयद

गोपाल मित्तल

एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम

गोपाल मित्तल

तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं

गोपाल मित्तल

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

बिजली की ज़द में एक मिरा आशियाँ नहीं

ग़नी एजाज़

दर्द जब दस्तरस-ए-चारागराँ से निकला

ग़ालिब अयाज़

ज़बाँ पे बार-ए-ख़ुदाया ये किस का नाम आया

ग़ालिब

या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात

ग़ालिब

मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब

ग़ालिब

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद

ग़ालिब

सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

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