समय Poetry (page 20)

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना

दानिश फ़राही

आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी

दाग़ देहलवी

वो ज़माना नज़र नहीं आता

दाग़ देहलवी

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

दाग़ देहलवी

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है

दाग़ देहलवी

यूँही जलाए चलो दोस्तो भरम के चराग़

डी. राज कँवल

लौट चलिए

चन्द्रभान ख़याल

ये मोहब्बत जो मोहब्बत से कमाई हुई है

चाँदनी पांडे

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी

चकबस्त ब्रिज नारायण

मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था

बुशरा एजाज़

मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था

बुशरा एजाज़

ख़ुद को तमाशा ख़ूब बनाता रहा हूँ मैं

बबल्स होरा सबा

जिस ने जाना जहाँ तमाशा है

बबल्स होरा सबा

जिस ने जाना जहाँ तमाशा है

बबल्स होरा सबा

ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है

बिस्मिल इलाहाबादी

उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था

बिमल कृष्ण अश्क

कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

सोते में मुस्कुराते बच्चे को देख कर

बिलाल अहमद

बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ऐ 'रसा' जैसा है बरगश्ता ज़माना हम से

भारतेंदु हरिश्चंद्र

फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा

भारतेंदु हरिश्चंद्र

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम

बेख़ुद देहलवी

पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ

बेखुद बदायुनी

मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा

बेकल उत्साही

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