विरोधी - Poetry (page 3)

सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

कब गवारा है मुझे और कहीं पर चमके

शहबाज़ ख़्वाजा

तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या

शाह नसीर

मुज़्तरिब हैं सभी तक़दीर बदलने के लिए

सगुफ़ता यासमीन

तीर ख़त्म हैं तो क्या हाथ में कमाँ रखना

शफ़ीक़ सलीमी

है कोई दर्द मुसलसल रवाँ-दवाँ मुझ में

शबाना यूसुफ़

क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

कितना दुश्वार है इक लम्हा भी अपना होना

सरफ़राज़ नवाज़

मुझ को होना है तो दरवेश के जैसा हो जाऊँ

सरफ़राज़ नवाज़

हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है

सरफ़राज़ ख़ालिद

मैं फ़र्त-ए-मसर्रत से डर है कि न मर जाऊँ

सरदार सोज़

बुझे चराग़ जलाने में देर लगती है

सरदार सोज़

लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी

सदार आसिफ़

ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है

सदार आसिफ़

आधा कमरा

सारा शगुफ़्ता

ज़िंदगी ने जो कहीं का नहीं रक्खा मुझ को

सालिम सलीम

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

सालिम सलीम

हिजाबात उठ रहे हैं दरमियाँ से

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

तेरी आवाज़

साहिर लुधियानवी

पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे

सईद अख़्तर

जो लब पे न लाऊँ वही शे'रों में कहूँ मैं

सादिक़ नसीम

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

कौन आएगा भूल कर रस्ता

सदा अम्बालवी

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की

सदा अम्बालवी

इक आग देखता था और जल रहा था मैं

साबिर वसीम

तन्हाई

साबिर दत्त

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