विरोधी - Poetry (page 7)

मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो

बिस्मिल अज़ीमाबादी

जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

दुश्मन ब-नाम-ए-दोस्त बनाना मुझे भी है

बिल्क़ीस ख़ान

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है

बेखुद बदायुनी

ज़िंदगी नाम है मोहब्बत का

अज़ीज़ हैदराबादी

माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम

अज़ीज़ हामिद मदनी

इस गुफ़्तुगू से यूँ तो कोई मुद्दआ नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है

अज़हर नवाज़

शहर को आतिश-ए-रंजिश के धुआँ तक देखूँ

अज़हर हाश्मी

हवा को ज़िद कि उड़ाएगी धूल हर सूरत

अज़हर अदीब

कुछ अब के रस्म-ए-जहाँ के ख़िलाफ़ करना है

अज़हर अदीब

अगर चुभती हुई बातों से डरना पड़ गया तो

आसिम वास्ती

जिस दम तिरे कूचे से हम आन निकलते हैं

आसिफ़ुद्दौला

जो नक़्श है हस्ती का धोका नज़र आता है

असग़र गोंडवी

जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई

असद भोपाली

दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार

आरज़ू लखनवी

वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था

आरज़ू लखनवी

उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे

आरज़ू लखनवी

ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा

आरज़ू लखनवी

आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं

आरज़ू लखनवी

किसी सूरत अगर इज़हार की सूरत निकल आए

अरशद लतीफ़

उन वाइ'ज़ों की ज़िद से हम अब की बहार में

अरशद अली ख़ान क़लक़

वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की

अरशद अली ख़ान क़लक़

उन्हें ये ज़ोम कि बे-सूद है सदा-ए-सुख़न

अरशद अब्दुल हमीद

ग़ज़ल में जान पड़ी गुफ़्तुगू में फूल खिले

अरशद अब्दुल हमीद

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